मनुष्यों की जो अधिकतर कठिनाइयाँ होती है उनका कारण होता है, उनका अपनी क्रियाओं पर और दूसरों की क्रियाओं पर अपनी प्रतिक्रियाओं के नियंत्रण का अभाव ।
व्यक्ति को अपने स्वभाव और अपनी दुर्बलताओं के अनुसार अपने लिए एक अनुशासन बना लेना चाहिये जिसका बिना हेर-फेर किये अनुसरण करना चाहिये। उदाहरण के लिए, कभी झगड़ा न करो, जब कोई कुछ अप्रिय चीज़ कहें या करे तो कभी उत्तर न दो। जब तुम सहमत न होओ तो बहस मत करो। स्पष्ट है कि जब चीज़ें या लोग वैसे न हो जैसे तुम चाहते हो तो कभी झल्लाओ मत ।
स्वभावत: यदि व्यक्ति को अपने ऊपर नियंत्रण रखने की आदत नहीं है तो यह आदत डालने में बहुत समय लगता है, लेकिन अगर तुम प्रगति करना चाहते तो यह एकदम अनिवार्य है ।
मार्ग लंबा है । इसलिए तुम्हारे अन्दर धीरज होना चाहिये और अपने प्रति अचूक सच्चाई होने चाहिये। औरों के साथ शांति से रहने के लिए आत्मानुशासन जरूरी है, और इसका अभ्यास उन्हें भी करना चाहिये जो रूपांतर की अभीप्सा नहीं करते ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१७)
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