एकमात्र चीज़ जो महत्वपूर्ण हैं, एकमात्र चीज़ जिसका मूल्य है, वह है ‘तेरे’ साथ आधिकाधिक पूरी तरह से तदात्म होने की इच्छा, हमारी चेतना को ‘तेरी’ निरपेक्ष चेतना के साथ युक्त करने की, ‘तेरे’ परम विधान, ‘तेरी’ प्रेममयी इच्छा का आधिकाधिक शांत, अचंचल, निस्स्वार्थ, बलवान सेवक बनने की इच्छा।
… मौन भक्ति से मैं तुझे नमन करती हूँ … ।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…