मेरे जीवन की जीवन ! मेरी अपनी मधुरतम माँ !
मेरे प्रेम को स्वीकार करो और जैसा तुम बरसों से करती आई हो मेरी भूलों को क्षमा करो। मैं आशा करता हूँ की ये मानसिक वृत्तियाँ आती-जाती रहेगी। इन सब आते-जाते बादलों के बीच मैं तुम्हारें आलोकमय मुसकुराते चेहरे को कभी न भूलूँ !
मेरे अत्यंत प्रिय बालक,
मैं सचमुच आशा करती हूँ कि तुम शीघ्र ही अपनी सब कठिनाइयों से बाहर निकाल आओगे । उच्चतर चेतना की ओर बस एक अच्छी छलांग, जहां सब समस्याओं का समाधान हो जाता हैं, और तुम अपनी कठिनाइयों से बाहर हो जाओगे । मुझे कभी ऐसा नहीं लगता कि मैं क्षमा कर रही हूँ । प्रेम क्षमा नहीं करता , वह समझता और उपचार करता हैं ।
सदा मेरा प्रेम और मेरे आशीर्वाद ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…