मधुर मां, हम ईर्ष्या और प्रमाद से कैसे पिण्ड छुड़ा सकते या उन्हें ठीक कर सकते हैं ?
स्वार्थ तुम्हें ईर्ष्यालु बनाता है और दुर्बलता तुम्हें आलसी बनाती है।
दोनों ही स्थितियों में एकमात्र सच्चा प्रभावशाली उपचार है भगवान के साथ सचेतन ऐक्य । वस्तुतः, जैसे ही तुम भगवान के बारें में सचेतन और उनके साथ एक हो जाते हो वैसे ही सच्चे प्रेम के साथ प्रेम करना सीखते हो : ऐसा प्रेम जो केवल प्रेम के आनंद के लिए प्रेम करता है, जिसे बदले में प्रेम किये जाने की जरूरत नहीं है; साथ ही तुम अक्षय भण्डार के उत्स से ‘शक्ति’ प्राप्त करना सीखते हो और अनुभव से जानते हो कि भगवान की सेवा में इस ‘शक्ति’ का प्रयोग करने से तुमने जो खर्च किया है वह सब और उससे कहीं अधिक प्राप्त करते हो।
मन द्वारा सुझाये गये सभी इलाज, सर्वाधिक प्रदीप्त मन द्वारा भी केवल शामक होते हैं, उपचार नहीं।
आशीर्वाद ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)