श्रीमाँ तथा श्रीअरविंद की सहायता हमेशा तुम्हारें लिए प्रस्तुत है । तुम्हें पूरी तरह से उसके प्रति मुड़ना-भर है और वह तुम्हारे ऊपर क्रिया करेगी ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…