जिस क्षण तुम संतुष्ट हो जाओ और अभीप्सा करना छोड़ दो, उसी क्षण से तुम मरना शुरू कर देते हो। जीवन गति है, जीवन प्रयास है । यह आगे ही आगे की और कूच है, भावी उद्घाटनों और सिद्धियों की ओर आरोहण है। आराम करना चाहने से भयंकर और कुछ नहीं है।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान की परीक्षा

भगवान जब बुरी-से-बुरी परीक्षा लेते हैं तब वह अच्छे-से-अच्छा पथ दिखाते हैं, जब वह कठोरतापूर्वक…

% दिन पहले

डर का इलाज

..अब एक छोटा-सा इलाज है जो बहुत सरल है, क्योंकि यह सहज बुद्धि के एक…

% दिन पहले

प्रकाश और आनंद में जीना

कल मैंने लिखा था कि एक गंभीर स्थिरता है - लेकिन आज केवल एक गंभीर…

% दिन पहले

आखिर कब ?

इन मायावी वनों में एक देवशिशु खेल रहा है, आत्मभाव की धाराओ के तट पर…

% दिन पहले

वृद्धावस्था और मृत्यु

यदि व्यक्ति यह अनुभव करे कि उसका इस जीवन का कार्य समाप्त हो गया है…

% दिन पहले

आवश्यक कार्य

श्रीअरविंद प्रभु के सनातन अवतार हैं, अगर हम उनकें साथ सतत संपर्क में रह सकें…

% दिन पहले