मैंने तुम्हारी प्रार्थना को ‘परम प्रभु’ के सामने रख दिया है । लेकिन अगर तुम ‘आनन्द’ में रहना चाहते हो तो तुम्हें अपनी इच्छा को ‘भगवान्’ पर लादने की कोशिश नहीं करनी चाहिये, बल्कि इसके विपरीत, तुम्हें समान शान्ति के साथ ‘उनकी’ ओर से जो कुछ आये उसे स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिये; क्योंकि हमारी प्रगति के लिए क्या अच्छा है इसे ‘वे’ हमसे ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…