मधुर मां,
अपने जीवन में मुझे जब कभी कठिनाई का सामना करना पड़ा है, हर बार जब कभी मुझे किसी सुख-आभासी सुख-से वञ्चित होना पड़ा है तो मेरे मनोवैज्ञानिक कष्ट को दूर करने के लिए हमेशा तुरन्त ही कोई सान्त्वना आयी है। कोई चीज मुझसे कहती है, “यह सब स्वयं तुम्हारे भले के लिए और भागवत कृपा द्वारा किया गया है।” क्या यह अच्छा है, क्या इस तरह सोचना अच्छा और लाभप्रद है?
न सिर्फ यह कि यह सोचना ठीक, अच्छा और लाभप्रद है, बल्कि अगर तुम आध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहो तो यह मनोवृत्ति बिलकुल अनिवार्य
है। वस्तुतः, यह पहला कदम है, जिसके बिना तुम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। इसीलिए मैं हमेशा कहती हूं, “तुम जो कुछ करो, अपना अच्छे-से-अच्छा करो, और परिणाम परम प्रभु के हाथ में छोड़ दो; तब तुम्हारा हृदय शान्त रहेगा।”
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…