आध्यात्मिक भाव धार्मिक पूजाभाव, भक्ति और उत्सर्ग का विरोधी नहीं है। धर्म में ग़लती यह है कि मन एक ही सिद्धांत को ऐकान्तिक रूप से सत्य मान कर उससे ही चिपका रहता है। तुम्हें हमेशा याद रखना चाहिये कि सिद्धांत सत्य की केवल मानसिक अभिव्यक्ति हैं और यह भी कि यह सत्य हमेशा विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकता है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…