… बहुत कम लोग हैं, बहुत ही कम, उनकी संख्या न के बराबर है, जो सच्ची धार्मिक भावना के साथ गिरजाघर या मंदिर जाते हैं, यानि, किसी चीज़ के लिए प्रार्थना करने या भगवान से कुछ मांगने के लिए नहीं, बल्कि अपने-आपको अर्पित करने के लिए, कृतज्ञता प्रकट करने के लिए, अभीप्सा और आत्मसमर्पण करने के लिए जाते हैं। मुश्किल से लाखों में एक ऐसा होता है। … केवल इतना जरूर है कि तुम बड़ी सद्भावना के साथ जाते हो इसलिए तुम कहते हो : “ओह! ध्यान के लिए कितनी शांत जगह है यह ! ”
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५४
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…