हे मेरे मधुर स्वामी, कितनी तीव्रता के साथ मेरा प्रेम तेरे लिए अभीप्सा करता है। …
वर दे कि मैं तेरे दिव्य प्रेम के सिवा और कुछ न होऊं और यह प्रेम हर सत्ता में सशक्त और विजयी होकर जागे।
वर दे कि मैं प्रेम का विशाल चोगा बन जाऊं जो सारी धरती को ढके रहे, सभी हृदयों में प्रवेश करे, हर कान में आशा और शांति का तेरा दिव्य संदेश गुनगुनाये।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…