हे मेरे मधुर स्वामी, कितनी तीव्रता के साथ मेरा प्रेम तेरे लिए अभीप्सा करता है। …
वर दे कि मैं तेरे दिव्य प्रेम के सिवा और कुछ न होऊं और यह प्रेम हर सत्ता में सशक्त और विजयी होकर जागे।
वर दे कि मैं प्रेम का विशाल चोगा बन जाऊं जो सारी धरती को ढके रहे, सभी हृदयों में प्रवेश करे, हर कान में आशा और शांति का तेरा दिव्य संदेश गुनगुनाये।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…