हे मेरे मधुर स्वामी, कितनी तीव्रता के साथ मेरा प्रेम तेरे लिए अभीप्सा करता है। …
वर दे कि मैं तेरे दिव्य प्रेम के सिवा और कुछ न होऊं और यह प्रेम हर सत्ता में सशक्त और विजयी होकर जागे।
वर दे कि मैं प्रेम का विशाल चोगा बन जाऊं जो सारी धरती को ढके रहे, सभी हृदयों में प्रवेश करे, हर कान में आशा और शांति का तेरा दिव्य संदेश गुनगुनाये।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…