हर एक को अपनी निश्चिति अपने ही अन्दर खोजनी चाहिये, सब चीजों के बावजूद इसे बनाये, संभाले रखना चाहिये और किसी भी कीमत पर, लक्ष्य तक बढ़ते जाना चाहिये। ‘विजय’ अधिक-से-अधिक सहिष्णु की होती है ।
सब विरोधों के होते हुए अपनी सहन-शक्ति बनाये रखने के लिए हमारे सहारे का आधार अचल-अटल होना चाहिये और एक ही सहारा अचल-अटल है, वह है ‘सत’ का, ‘परम सत्य’ का सहारा ।
किसी और को खोजना बेकार है। केवल यही है जो कभी साथ नहीं छोड़ता ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…