बाहरी और भीतरी अनुशासन के बिना तुम जीवन में कुछ भी नहीं पा सकते, न तो आध्यात्मिक और न ही जड़-भौतिक स्तर पर । वे सब जो किसी सुन्दर या उपयोगी चीज़ का सृजन करने में सफल हुए हैं, वे ऐसे लोग थे जो अपने-आपको अनुशासित करना जानते थे।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
अगर तुम बीमार पड़ते हो तो तुम्हारी बीमारी की इतनी व्याकुलता और भय से देख-रेख…
भूतकाल के बारे में सोचते रहना बिलकुल गलत है । सच्ची विधि तो यह याद…
क्या यह हो सकता है कि एक व्यक्ति जो श्रीअरविंद की ओर खुला है, माँ…