सर्वदा अनुभव करो और अपने बढ़ते हुए अनुभवों के प्रकाश में कार्य करो, पर केवल तर्क-वितर्क करने वाले मस्तिष्क के अनुभवों के प्रकाश में कार्य मत करो। ईश्वर हृदय से बातें करता है जब कि मस्तिष्क उसकी बात नहीं समझ सकता ।

संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली 

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