हे प्यारी मां, जब कोई मुझसे बातें करे तो मुझे अचंचल रहना सिखाइये, क्योंकि, बाद में मेरा मन भटकता है।
अपने-आपको बातचीत के साथ एक न कर लो। उसे ऊपर से, दूर से देखो, मानों कोई दूसरा सुन और बोल रहा है, और एकदम से अनिवार्य शब्दों के अतिरिक्त और कुछ न बोलो।
सन्दर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१७)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…