मनुष्यों के बीच में अकेलेपन का अनुभव करना इस बात का चिन्ह है कि तुम अपनी सत्ता के अंदर भगवान की उपस्थिती के साथ संपर्क पाने की आवश्यकता अनुभव कर रही हो। अत: तुम्हें नीरवता में एकाग्र होना चाहिये और सभी मानसिक क्रियाओं के परे, भीतर की गहराइयों में प्रवेश करके चेतना की गहराइयों में भागवत उपस्थिती को खोज निकालना चाहिये।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…