श्रीअरविंद श्रीमाँ के विषय में

माताजी और मैं

माताजी और मैं एक ही हैं पर दो शरीरों में, यह आवश्यक नहीं है कि दोनो शरीर सदा एक ही…

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श्रीमाँ के विषय में

यहाँ पर कुछ लोग आपको माताजी से महानतर क्यों मानते हैं ? क्या आप दोनों समान स्तर से नहीं हैं…

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उन्नति नहीं करने का कारण

तुमने सर्वदा ही अपने मन और संकल्पशक्ति की क्रिया पर अत्यधिक भरोसा रखा है-इसी कारण तुम उन्नति नहीं कर पाते।…

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तुम्हारा लक्ष्य

एकमात्र श्रीमाँ ही तुम्हारा लक्ष्य हैं। वे अपने अन्दर सब कुछ समाये हुये हैं। उनका पास होना अपने पास सब…

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महत्वपूर्ण सिद्धान्त

न केवल अपनी आन्तरिक एकाग्रता में बल्कि अपनी बाह्य क्रियाओं व गतिविधियों में भी तुम्हें उचित मनोवृत्ति अपनानी चाहिये। यदि…

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घर और काम में साधना

तुम्हारें लिए यह बिल्कुल संभव है कि तुम घर पर और अपने काम के बीच रह कर साधना करते रहो…

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हमारा उद्देश्य

योगी, सन्यासी, तपस्वी बनना यहाँ का उद्देश्य नहीं हैं। हमारा उद्देश्य है रूपांतर, और तुमसे अनंतगुना बड़ी शक्ति के द्वारा…

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