माताजी के वचन भाग-२

सत्य

सत्य लकीर की तरह नहीं सर्वांगीण है, वह उत्तरोत्तर नहीं बल्कि समकालिक है। अतः उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया…

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हृदय

भगवान हमेशा तुम्हारें हृदय में आसीन होते हैं , सचेतन रूप से जीवित रहते है । संदर्भ : माताजी के…

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संघर्ष

तुम्हारे अन्दर जो चीज साधारण जीवन से आसक्त है और जो भागवत जीवन के लिए अभीप्सा करती है, उन दोनों के बीच…

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आत्म-अनुशासन

आत्म-अनुशासन के बिना कोई जीवन सफल नहीं हो सकता । संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)

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भय

सच्ची बीमारी भय हैं । भय को दूर फेंक दो तो बीमारी चली जायेगी। संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)

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हमारा लक्ष्य

हमारा लक्ष्य न तो राजनीतिक है, न सामाजिक, वह आध्यात्मिक लक्ष्य है। हम जो चाहते हैं वह वैयक्तिक चेतना का…

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अकेलापन

तुम अकेलापन इसलिए लगता है क्योंकि तुम प्रेम पाने की आवश्यकता का अनुभव करते हो । बिना मांग किये, केवल…

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तीन चीज़ों से परहेज़

जो लोग पूर्णयोग की साधना करना चाहते हैं उन्हें दृढ़ता के साथ यह सलाह दी जाती है कि वे इन…

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सुख

तुम जो सुख पाते हो उसकी अपेक्षा तुम जो सुख देते हो वह तुम्हें ज़्यादा सुखी बनाता है । संदर्भ…

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अन्याय का दण्ड

माताजी, क्या भगवान् अन्याय के दण्ड देते हैं ? क्या भगवान् के लिये किसी को दण्ड देना सम्भव है ?…

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