
मिथ्यात्व को जीतने की पहली शर्त
अतिमानस अपने-आपमें केवल ‘सत्य’ ही नहीं, बल्कि मिथ्यात्व का नितान्त निषेध है। अतिमानस ऐसी चेतना में कभी नहीं उतरेगा, प्रतिष्ठित और अभिव्यक्त न होगा जो...
अतिमानस अपने-आपमें केवल ‘सत्य’ ही नहीं, बल्कि मिथ्यात्व का नितान्त निषेध है। अतिमानस ऐसी चेतना में कभी नहीं उतरेगा, प्रतिष्ठित और अभिव्यक्त न होगा जो...
हर उपस्थित व्यक्ति के साथ सचेतन संपर्क स्थापित कर लेने के बाद मैं ‘परम प्रभु’ के साथ एक हो जाती हूँ और तब मेरा शरीर...
मैं किसी राष्ट्र की, किसी सभ्यता की, किसी समाज की, किसी जाति की नहीं हूं, मैं भगवान् की हूं । मैं किसी स्वामी, किसी शासक,...
श्रीमाँ की उपस्थिती हमेशा उपस्थित रहती है; लेकिन अगर तुम अपने ही भरोसे क्रिया करना चाहो-चीजों पर अपने ही विचार, अपनी ही धारणाएँ, अपनी ही...
जितना कम हो सके उतना कम बोलो। जितना अधिक हो सके उतना अधिक काम करो । संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
यदि किसी समय तुम्हें कोई गभीर दुःख, दारुण संशय या तीव्र कष्ट अभिभूत और हताश कर रहा हो तो शान्ति और स्थिरता पुनः प्राप्त करने...
भागवत प्रेम को जल्दी प्रकट करने का सबसे अच्छा उपाय है, सत्य की विजय में सहायता देना। संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
तुम जो कुछ करो उसमें मज़ा लेने की कोशिश करो । तुम जो कुछ करो उसमें तुम्हें रस हो तो तुम उसे मज़ा लेकर कर...
सभी सिद्धान्त, सभी शिक्षाएं अन्तिम विश्लेषण में बोलने या लिखने के तरीकों से बढ़कर और कुछ नहीं होती । यहा तक की ऊंचे-से-ऊंचे अंतर्दर्शन भी उनके साथ...
भागवत कृपा हमेशा रहती है, शाश्वत रूप से उपस्थित और सक्रिय; लेकिन श्रीअरविंद कहते हैं कि हमारे लिए उसे ग्रहण करने, बनाये रखने और वह...