श्री माँ के वचन

समझने की क्षमता

मन की नीरवता का अभ्यास करो। इससे समझने की क्षमता आती है । संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)

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कामना

जब तुम्हारें अंदर कोई कामना हो तो तुम अपनी वांछित वस्तु द्वारा शासित होते हो, वह तुम्हारें मन और जीवन…

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अस्थायी और स्थायी

वह सब जो मानव संबन्धो पर आश्रित है, अस्थायी है और आता-जाता रहता है, वह मिला-जुला और असन्तोषजनक होता है।…

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ग्रहनशीलता

ग्रहणशील होने का अर्थ है, देने की प्रबल इच्छा का होना और तुम्हारें पास जो कुछ है, तुम जो कुछ…

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दिव्य लीला

सारा काम खेल होना चाहिए, लेकिन वह हो दिव्य लीला, जिसे स्वयं भगवान के साथ और भगवान के लिये खेला…

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आराम करना

जिस क्षण तुम संतुष्ट हो जाओ और अभीप्सा करना छोड़ दो, उसी क्षण से तुम मरना शुरू कर देते हो।…

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भावना

अगर तुम सचमुच भगवान से प्रेम करते हो तो इसे चुपचाप और शांत रहकर प्रमाणित करो। हर के जीवन में…

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तेरी नयी अभिव्यक्ति

... मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते हुए मैं वहाँ उस अग्नि…

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परिश्रम और ऊर्जा

यदि तुम घोर परिश्रम न करो तो तुम्हें ऊर्जा नहीं मिलती, क्योंकि उस स्थिति में तुम्हें उसकी जरूरत नहीं होती…

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दासता

बुरी चीज़ है दासता, चाहे वह परहेज की दासता हो या आवश्यकताओं की। हमारे पास जो कुछ आये उसे हम…

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