श्री माँ

परात्पर भगवान

जो श्रद्धा वैश्व भगवान के प्रति जाती है वह लीला की आवश्यकताओं के कारण अपनी क्रियाशक्ति में सीमित रहती है।…

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सत्य को जीना

सत्य लकीर की तरह नहीं सर्वांगीड है, वह उतरोत्तर नहीं बल्कि समकालिक है। अतः उसे शब्दो में व्यक्त नहीं किया…

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व्यवस्था

काम में व्यवस्था और सामंजस्य होने चाहियें। जो काम यूं देखने में बिलकुल नगण्य हो उसे भी पूर्ण पूर्णता के…

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प्रकृति का विधान

प्रकृति का ऐसा कोई विधान नहीं हैं जिसका अतिक्रमण न किया जा सके या जिसे बदला न जा सके, केवल…

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भय को उठा फेंको

प्यारी माताजी, मुझे सर्दी हो गयी है, क्या मैं रोज़ की तरह स्नान करूँ ? जो तुम्हें पसंद हो करो,…

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क्या तुम सुरक्षित हो ?

कोई आसक्ति न हो, कोई कामना न हो, कोई आवेग न हो, कोई पसंद न हो; पूर्ण समता हो, अचल…

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बेचैनी से बाहर निकालने का उपाय

हर बार जब तुम बेचैन होओ तो तुम्हें दोहराना चाहिये - बाह्य ध्वनि के बिना अपने भीतर बोलते हुए और…

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वस्तुओं को देखने का नजरिया

साधारण रूप से, सामान्य मनुष्य में भौतिक, शारीरिक चेतना चीजों को वैसे नहीं देखती जैसी कि वे वस्तुतः है ,…

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हँसते रहो

व्यक्ति को हमेशा हँसना चाहिये, हमेशा। 'प्रभु' हँसते है और हँसते रहते हैं। 'उनका' हास्य इतना अच्छा है, इतना अच्छा…

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पराजयवाद

जब हम अपनी चेतना से समस्त पराजयवाद को निकाल फेकेंगे तब हम सिद्धि की दिशा में एक बहुत बड़ी छलांग…

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