माँ, मुझे लगता है कि मैं बहुत ही छिछोरा व्यक्ति हूँ। क्या आप मुझे बदलोगी नहीं ? मैं तुम्हें बदल…
यह सम्पूर्ण प्रकृति इक मूक भाव से केवल मात्र उसी को पुकारती है, कि तपकते पीड़ाकूल जीवन के व्रण उसके…
एक परम चेतना है जो अभिव्यक्ति पर शासन करती है। निश्चय ही उसकी बुद्धि हमारी बुद्धि से बहुत महान है।…
मधुर माँ, क्या हमारा प्राण केवल कामनाओं, स्वार्थपूर्ण भावनाओं आदि से ही बना है उसमें कुछ अच्छी चीज़ें भी हैं?…
प्रश्न-जब साधक में न तो अभीप्सा ही उठती हो, न कोई अनुभूति ही होती हो, तब उसे साधना जारी रखने…
मैं सदा अधिक सावधान रहने की कोशिश करता हूँ, लेकिन मेरे हाथ से चीज़ें ख़राब हो जाती हैं । हाँ,…
मधुर माँ, मैं जो प्रतिज्ञाएँ करता हूँ वे अपनी तीव्रता और उत्साह कुछ ही समय बाद खो बैठती हैं। मैं…
श्रद्धा भरोसे से अधिक, कहीं अधिक पूर्ण है। देखो, तुम्हें भगवान पर भरोसा है, इस अर्थ में कि तुम्हें अधिक…
मनुष्यों की जो अधिकतर कठिनाइयाँ होती हैं उनका कारण होता है, उनका अपनी क्रियाओं पर और दूसरों की क्रियाओं पर…
प्रश्न : क्या अभीप्सा की क्षमता अलग-अलग साधकों में उनकी प्रकृति के अनुसार बदलती रहती है ? उत्तर: नहीं, अभीप्सा…