भगवान हमेशा तुम्हारें हृदय में आसीन होते हैं , सचेतन रूप से जीवित रहते है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग -२)
मधुर माँ, ज्ञान और बुद्धि क्या हैं ? क्या हमारे जीवन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका…
श्रीक़ृष्ण ने मुझे वेदों का वास्तविक अर्थ बतलाया है, इतना ही नहीं, बल्कि उन्होने मुझे…
. . . (हे प्रभो!) तू यह निश्चय कब करेगा कि इस सारे प्रतिरोध के…
बहुत समय पहले श्रीअरविन्द ने आश्रम में हर जगह यह अनुस्मारक लगवा दिया था जिसे…
केवल अपने लिए अतिमानस को प्राप्त करना मेरा अभिप्राय बिल्कुल नहीं है - मैं अपने…