हर क्षण सभी अनपेक्षित, अप्रत्याशित और अज्ञात हमारे सामने होता है, हर क्षण विश्व अपने प्रत्येक भाग में और अपनी समग्रता में पुनर्निर्मित होता रहता है। और अगर हमारे अन्दर सचमुच जीती-जागती श्रद्धा होती, अगर हमें तेरी सर्वशक्तिमान् सामर्थ्य और एकमात्र सद्वस्तु के बारे में निरपेक्ष
निश्चिति होती तो तेरी अभिव्यक्ति हर क्षण इतनी स्पष्ट होती कि समस्त विश्व उसके द्वारा रूपान्तरित हो जाता। लेकिन जो कछ हमें चारों ओर से घेरे हुए है और हमसे पहले हो चुका है उसके हम ऐसे दास हैं, जो कुछ अभिव्यक्त हुआ है उसकी सारी राशि के द्वारा हम इतने अधिक प्रभावित होते हैं और हमारी श्रद्धा इतनी दुर्बल होती है कि हम अब भी रूपान्तर के महान् चमत्कार के मध्यस्थ होने में असमर्थ रहते हैं।… लेकिन, हे प्रभो, में जानती हूं कि एक दिन ऐसा होगा, मैं जानती हूं कि एक दिन आयेगा जब तू उन सबको रूपान्तरित कर देगा जो हमारे नजदीक आते हैं; तू उन्हें ऐसे आमूल रूप से रूपान्तरित कर देगा कि वे पूरी तरह से भूतकाल के बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे, वे तेरे अन्दर एकदम नये जीवन के साथ जीना शुरू करेंगे, एक ऐसा जीवन जो पूरी तरह तुझसे बना होगा और तू ही उसका परम प्रभु होगा। और इस तरह सभी चिन्ताएं निरभ्रता में बदल जायेंगी, सभी परिताप शान्ति में, सभी सन्देह निश्चिति में, समस्त कुरूपता सामञ्जस्य में, समस्त अहंकार आत्मदान में, सारा अंधेरा प्रकाश में और सभी दुःख-दर्द अपरिवर्तनशील सुख में बदल जायेंगे।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
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