माताजी को स्मरण करो और, यद्यपि शरीर से तुम उनसे बहुत दूर हो, उनको अपने साथ अनुभव करने का प्रयास करो और तुम्हारी आंतर सत्ता जिस चीज को उनकी इच्छा बतलाये उसी के अनुसार कार्य करो। तब तुम अच्छी तरह उनकी और मेरी उपस्थिति का अनुभव कर सकोगे और एक संरक्षण के रूप में अपने चारों ओर हमारे वातावरण को लिये रहोगे तथा स्थिरता और ज्योति का एक घेरा सर्वत्र तुम्हारे साथ बना रहेगा।
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
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