स्वर्णिम प्रकाश : श्रीअरविंद की कविता


प्रभु श्रीअरविंद

तेरे स्वर्णिम प्रकाश का मेरे मस्तिष्क में हुआ अवतरण

और मन के धुंधले कक्ष हो गये सूर्यायित

प्रज्ञा के तान्त्रिक तल के लिए एक उत्तर प्रसन्न,

एक शान्त प्रदीपन और एक प्रज्वलन।

 

तेरे स्वर्णिम प्रकाश का मेरे कण्ठ में हुआ अवतरण,

और मेरी सम्पूर्ण वाणी है अब एक दिव्य धुन,

मेरा अकेला स्वर तेरा स्तुति-गान;

अमर्त्य की मदिरा से उन्मत्त हैं मेरे वचन।

 

तेरे स्वर्णिम प्रकाश का मेरे हृदय में हुआ अवतरण

मेरे जीवन को तेरी शाश्वतता से करता आक्रान्त;

अब यह बन गया है तुझसे अधिष्ठित एक देवालय

और इसके सब भावावेगों का केवल तू एक लक्ष्य।

 

तेरे स्वर्णिम प्रकाश का मेरे पैरों में हुआ अवतरण :

मेरी धरती है अब तेरी लीलाभूमि और तेरा आयतन।

 

संदर्भ : श्रीअरविंद की कविताएँ


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