हर के के अन्दर अपने अहंकार होते हैं और सभी अहंकार एक-दूसरे से टकराते रहते हैं। आदमी स्वतंत्र सत्ता तभी बन सकता है जब वह अहंकार से पीछा छुड़ा ले।
स्वतंत्र होने के लिए तुम्हें पूरी तरह केवल भगवान का ही होना चाहिये।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
हर के के अन्दर अपने अहंकार होते हैं और सभी अहंकार एक-दूसरे से टकराते रहते हैं। आदमी स्वतंत्र सत्ता तभी बन सकता है जब वह अहंकार से पीछा छुड़ा ले।
स्वतंत्र होने के लिए तुम्हें पूरी तरह केवल भगवान का ही होना चाहिये।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
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