यदि व्यक्ति कष्ट का साहस, सहिष्णुता और भागवत कृपा में अडिग विश्वास के साथ सामना कर सके और जब कभी कष्ट आये तो उससे बचते फिरने के स्थान पर इस संकल्प और इस अभीप्सा के साथ उसे स्वीकार करे कि इसमें से पार होना और उस ज्योतिर्मय सत्य एवं अपरिवर्ती आनन्द को खोज निकालना है जो सभी वस्तुओं के अन्तस्तल में विद्यमान है तो पीड़ा-द्वार इच्छा-तुष्टि या तृप्तिकी अपेक्षा अधिक सीधा और अधिक जल्दी पहूँचाने वाला द्वार होता है ।

मैं’ ऐन्द्रिय सुखके बारे में नहीं कह रही हूँ क्योंकि वह तो बराबर और लगभग पूरी तरह इस अगाध दिव्य आनन्द की ओर से पीठ फेरे रहता है ।

ऐन्द्रिय सुख धोखा देंने वाला और विकृत छद्मरूप है जो हमें अपने लक्ष्य से भटकाकर दूर ले जाता है । यदि हम सत्य को पाने के उत्सुक है तो निश्चय ही हमें इसकी खोज नही करनी चाहिये । यह सुख हमें सारहीन बना देता है, हमें ठगता और भटकाता है । पीड़ा हमें एकाग्रचित्त होने के लिये विवश कर देती है ताकि हम उस कुचलने वाली चीज़ को सहने और उसका सामना करने में समर्थ बन सकें । इस प्रकार वह हमें गंभीरतर सत्य की ओर वापस लें जाती है । यदि व्यक्ति सबल हों तो दुःख में ही सबसे आसानी से सच्ची शक्ति प्राप्त करता है  दुःख में पड़कर ही फिर से सच्चे श्रद्धा -विश्वासको प्राप्त करना सबसे आसान होता है, – किसी ऐसी चीज़ में विश्वास जो परे है, ऊपर है, सब दुखों से परे है ।

सन्दर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५७-१९५८

शेयर कीजिये

नए आलेख

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले

भगवान की इच्छा

तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और…

% दिन पहले

गुप्त अभिप्राय

... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…

% दिन पहले