साहस और प्रेम ही अनिवार्य गुण हैं; और यह सब गुण यदि धुँधले या निस्टेज पड़ जायें फिर भी ये दोनों आत्मा को जीवित रखेंगे।
साहस का अर्थ है भय के सभी रूपों की पूर्ण अनुपस्थिति।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
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