यह सम्पूर्ण प्रकृति इक मूक भाव से
केवल मात्र उसी को पुकारती है,
कि तपकते पीड़ाकूल जीवन के व्रण
उसके चरण-स्पर्श से भर-भर जाएं,
औ’ धूमिल अंतरात्मा पर अंकित
मुहर बंदियां टूट-फूट झर जाएं,
औ’ द्रव्यों के पीड़ित पड़े हृदय में
उसका आलोक प्रज्वलित हो जाये।
सावित्री पर्व ३ सर्ग २
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…