यह सम्पूर्ण प्रकृति इक मूक भाव से

केवल मात्र उसी को पुकारती है,

कि तपकते पीड़ाकूल जीवन के व्रण

उसके चरण-स्पर्श से भर-भर जाएं,

औ’ धूमिल अंतरात्मा पर अंकित

मुहर बंदियां टूट-फूट झर जाएं,

औ’ द्रव्यों के पीड़ित पड़े हृदय में

उसका आलोक प्रज्वलित हो जाये।

सावित्री पर्व ३ सर्ग २

शेयर कीजिये

नए आलेख

हमारे बीच भागवत उपस्थिति

भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…

% दिन पहले

एक प्रोत्साहन

" जिस समय हर चीज़ बुरी से अधिक बुरी अवस्था की ओर जाती हुई प्रतीत…

% दिन पहले

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले