सावित्री अमृत – २


प्रभु श्रीअरविंद

यह तेरे विचरण की धरती एक सीमा है जिसने स्वर्ग को विलग कर दिया है;
यह तेरे जीवन-यापन की विधि उस ज्योति को जो तू स्वयं है ढक लेती है।

संदर्भ : सावित्री


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