सावित्री अमृत-१


श्रीअरविंद अपने कक्ष में

जो मन की पहुँच से अति परे है मैं वह परम गुह्यता हूं,

सूर्यों की श्रमसाध्य परिक्रमाओं की मैं लक्ष्य हूं;

मेरी ज्वाला और माधुर्य ही इस जीवन का कारण है ।

संदर्भ : “सावित्री” 


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