सामूहिक कार्य और सामूहिक साधना

कोई भी व्यक्तिगत एकाकी रूपान्तर, यानी, बस व्यक्ति रूपान्तरित हो जाये, न सम्भव है न ही उपयोगी। साथ ही, कोई भी व्यक्तिगत मानव सत्ता, केवल अपनी ही शक्ति का प्रयोग करके, रूपान्तर का कार्य सम्पन्न नहीं कर सकती, न ही हमारे योग का यह उद्देश्य है कि हम इधर-उधर बस कुछ वैयक्तिक अतिमानव खड़े कर दें। हमारे योग का उद्देश्य है, अतिमानसिक चेतना को धरती पर उतारना, उसे यहाँ प्रतिष्ठापित करना,
अतिमानसिक चेतना के सिद्धान्त पर एक नयी जाति की सृष्टि करना जो व्यक्ति के आन्तरिक तथा बाह्य जीवन के साथ-साथ सामूहिक जीवन पर भी शासन करे। इसी कारण आश्रम का होना आवश्यक था-भले यहाँ हमें व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से चाहे जितनी भी समस्याओं का सामना अतक्यों न करना पड़े। पार्थिव चेतना को, यानी मानव सत्ताओं को–जिनके प्रतिनिधि-रूप आश्रम के सदस्य तथा अन्य हैं-(सामान्य पार्थिव चेतना पर भी कार्य करना है) तैयार करना ही उद्देश्य है ताकि अतिमानसिक ‘शक्ति’ का अवतरण सम्भव हो सके। फिर, जैसे-जैसे जो प्रगति करता चलेगा, वैसे-वैसे एक के बाद दूसरे के द्वारा स्वीकृत होती हुई वह ‘शक्ति’ जड़-भौतिक जगत् पर अतिमानसिक चेतना को प्रतिष्ठित करती रहेगी और फिर धरती पर एक केन्द्र या व्यक्तियों का समूह बना कर अधिकाधिक अपना विस्तार करती रहेगी।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र 

शेयर कीजिये

नए आलेख

अपने चरित्र को बदलने का प्रयास करना

सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…

% दिन पहले

भारत की ज़रूरत

भारत को, विशेष रूप से अभी इस क्षण, जिसकी ज़रूरत है वह है आक्रामक सदगुण,…

% दिन पहले

प्रेम और स्नेह की प्यास

प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…

% दिन पहले

एक ही शक्ति

माताजी और मैं दो रूपों में एक ही 'शक्ति' का प्रतिनिधित्व करते हैं - अतः…

% दिन पहले

पत्थर की शक्ति

पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…

% दिन पहले

विश्वास रखो

माताजी,  मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूँ कि में कब खुश नहीं रहती; जब…

% दिन पहले