… यदि वे (मानसिक तथा प्राणिक) सत्ताएँ सदा सक्रिय रहती हैं और तुम सदा उनकी गतिविधियों के साथ तदात्म रहते हो तब पर्दा सदा बना रहेगा। यह भी संभव है कि तुम अपने को अलग कर लो और इन गतिविधियों को ऐसे देखो मानों वे तुम्हारी अपनी नहीं हैं बल्कि प्रकृति की एक यांत्रिक क्रिया हैं जिसका तुम एक तटस्थ साक्षी के समान अवलोकन करते हो। तब हम एक ऐसी आंतरिक सत्ता के प्रति अवगत हो जाते हैं जो अलग है, शांत है और प्रकृति में सम्मिलित नहीं है । यह आंतरिक मनोमय या प्राणमय पुरुष हो सकता है पर चैत्य नहीं, किन्तु आंतरिक मनोमय तथा प्राणमय पुरुष की चेतना की उपलब्धि चैत्य पुरुष के उदघाटन की ओर सदा ही एक पग उठाने जैसा होता है ।
संदर्भ : योग समन्वय
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…