सत्ता के पूर्ण आध्यात्मिक जीवन के लिये तैयार हों जाने से पहले सांसारिक जीवन का त्याग करना लाभदायी नही होता। ऐसा करने का अर्थ है अपनी सत्ता के विभिन्न अंगों में संघर्ष खड़ा कर देना और उसे इतनी तीव्रता तक उभार देना कि उसे सहन करने- के लिये प्रकृति तैयार न हों। तुम्हारे अन्दर के प्राणिक तत्वों को अंशत: अनुशासन तथा जीवन के अनुभव का सामना करना होगा, जब कि आध्यात्मिक लक्ष्य को अपनी दृष्टि के सामने रखना होगा तथा कर्मयोग की भावना के साथ धीरे-धीरे उसके द्वारा जीवन को परिचालित करने का प्रयास करना होगा ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
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मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…