योग के लिए अपने आपको तैयार करने के लिए क्या करना चाहिये?
सबसे पहले व्यक्ति को सचेतन बनना चाहिये। हम अपनी सत्ता के एक नगण्य से भाग में सचेतन है, इसके अधिकांश भाग में हम अचेतन है। यह अचेतनता ही हमें अपनी प्रकृति के अपरिमार्जित भाग के साथ नीचे की ओर बाँधे रहती है और उसके परिवर्तन या रूपान्तर को रोकती है। अचेतना द्वारा ही अदिव्य शक्तियाँ हमारे अन्दर घुस आती हैं और हमें अपना गुलाम बना लेती हैं। तुम्हें अपने बारे में सचेतन होना चाहिये, अपनी प्रकृति और प्रवृत्तियों के प्रति तुम्हें जाग्रत् होना चाहिये, तुम्हें यह जानना चाहिये कि तुम किसी चीज़ को क्यों और कैसे करते हो, कैसे सोचते या अनुभव करते हो। तुम्हें अपने प्रेरक भावों, आवेशों और अपनी गुप्त या प्रकट शक्तियों को समझना चाहिये जिनकी प्रेरणा से तुम काम करते हो। या यूँ कहें कि तुम्हें अपनी सत्ता की मशीन के सभी कल-पुरज़ों को अलग-अलग करके जान लेना चाहिये। एक बार तुम सचेतन हो जाओ तो तुम खरे और खोटे की परख और छान-बीन कर सकोगे, तुम देख सकोगे कि कौन-सी शक्तियाँ तुम्हें नीचे की ओर खींचती हैं और कौन-सी ऊपर उठने में सहायता देती हैं। और जब तुम उचित को अनुचित से, सत्य को असत्य से, दिव्य को अदिव्य से अलग करके जान लो तो तुम्हें सख्ती से अपने इस ज्ञान के अनुसार चलना चाहिये, अर्थात्, दृढ़तापूर्वक एक को त्याग कर दूसरे को स्वीकार करना चाहिये। पग-पग पर ये द्वन्द्व तुम्हारे सामने उपस्थित होंगे और पग-पग पर तुम्हें चुनाव करना होगा। तुम्हें धैर्य रखना होगा, लगन लगाये रहना होगा और चौकन्ना रहना होगा-योगियों की भाषा में “निद्रा-रहित”; दिव्यता का विरोध करती अदिव्यता को किसी भी प्रकार का मौक़ा देने से सदा ही इन्कार करना होगा।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९२९-१९३१)
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