दूसरे धर्म अधिक प्रचलित रूप से श्रद्धा और व्रतदीक्षा के धर्म हैं, किन्तु ‘सनातन धर्म’ स्वयं जीवन है; यह एक ऐसी वस्तु है जो उतनी विश्वास करने की चीज़ नहीं, जितनी की जीवन में चरितार्थ करने की है ।
संदर्भ : कर्मयोगी
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…