प्रत्येक व्यक्ति का सोचने, अनुभव करने तथा प्रतिक्रिया करने का अपना निजी तरीका होना ही चाहिये: तुम क्यों चाहते हो कि दूसरा वैसा ही करे जैसा कि तुम करते हो और तुम्हारे ही जैसे हों ? और यदि हम यह मान भी लें कि तुम्हारा सत्य उनके सत्य से महत्तर है ( यद्यपि यह शब्द एकदम कोई अर्थ नहीं रखता, क्योंकि, एक विशेष दृष्टिकोण से सभी सत्य ठीक हैं – वे सभी आंशिक हैं पर वे ठीक हैं क्योंकि वे सत्य हैं ), परंतु जिस क्षण तुम चाहते हो कि तुम्हारा सत्य तुम्हारे पड़ोसी के सत्य से महत्तर हो, तुम सत्य से विच्युत होना आरंभ कर देते हो ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…