सत्य लकीर की तरह नहीं सर्वांगीड है, वह उतरोत्तर नहीं बल्कि समकालिक है। अतः उसे शब्दो में व्यक्त नहीं किया जा सकता उसे जीना होता है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…