कभी-कभी नैतिक भावनाएँ भी मिल-जुल जाती और निर्णय को गलत बना देती है ,पर हमें सभी नैतिक भावनाएँ को अपने से बहुत दूर फेंक देना चाहिये क्योंकि नैतिकता और ‘सत्य’ आपस में एक दूसरे से बहुत दूर हैं (यदि मेरी इस बात से किसी को चोट पहुँच रही हो तो मुझे इसका दु:ख है, पर बात ऐसी ही है)। जब तुम समस्त आकर्षण और समस्त विकर्षण को जीत लोगे तभी तुम केवल यथार्थ निर्णय कर सकोगे । जब तक ऐसी चीज़ें है जो तुम्हें आकर्षित करती है और ऐसी चीज़ें है जो तुम्हें विकर्षित करती है तब तक यह संभव नहीं की तुम्हारी इंद्रियाँ पूर्णत: रूप से विश्वसनीय रूप से कार्य कर सकें|
संदर्ब : श्रीमातृवाणी(खंड-४)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…