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सत्य और नैतिकता

कभी-कभी नैतिक भावनाएँ भी मिल-जुल जाती और निर्णय को गलत बना देती है ,पर हमें सभी नैतिक भावनाएँ को अपने से बहुत दूर फेंक देना चाहिये क्योंकि नैतिकता और ‘सत्य’ आपस में एक दूसरे से बहुत दूर हैं (यदि मेरी इस बात से किसी को चोट पहुँच रही हो तो मुझे इसका दु:ख है, पर बात ऐसी ही है)। जब तुम समस्त आकर्षण और समस्त विकर्षण को जीत लोगे तभी तुम केवल यथार्थ निर्णय कर सकोगे । जब तक ऐसी चीज़ें है जो तुम्हें आकर्षित करती है और ऐसी चीज़ें है जो तुम्हें विकर्षित करती है तब तक यह संभव नहीं की तुम्हारी  इंद्रियाँ पूर्णत: रूप से विश्वसनीय रूप से कार्य कर सकें|

संदर्ब : श्रीमातृवाणी(खंड-४)

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