सत्य लकीर की तरह नहीं सर्वांगीण है, वह उत्तरोत्तर नहीं बल्कि समकालिक है। अतः उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता : उसे जीना होता है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
सत्य लकीर की तरह नहीं सर्वांगीण है, वह उत्तरोत्तर नहीं बल्कि समकालिक है। अतः उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता : उसे जीना होता है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
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