भगवान सब जगह, सब चीजों में हैं, उन चीजों में भी जिन्हें हम फेंक देते हैं और उनमें भी जिन्हें हम बहुत सावधानी के साथ सँजो कर रखते हैं, उनमें जिन्हें हम पैरों से कुचलते हैं और उनमें भी जिनकी हम आराधना करते हैं। हमें आदर के साथ जीना सीखना चाहिये और ‘उनकी’ सतत और निर्विकार उपस्थिती को कभी नहीं भूलना चाहिये।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
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शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…