सच्ची नम्रता यह जानने में है कि केवल परम चेतना, परम इच्छा का ही अस्तित्व है और “मैं” का अस्तित्व नहीं है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
हमारे युग में सफलता और उससे मिलने वाली भौतिक तुष्टि का ही मूल्य है। फिर…
वर्तमान बढ़ते हुए संघर्ष में हमारी वृत्ति कैसी होनी चाहिये? ‘भागवत कृपा’ में श्रद्धा और…
१. दूसरों पर नियन्त्रण रख सकने के लिए स्वयं अपने ऊपर पूर्ण नियन्त्रण पाना अनिवार्य…
हम सब के अन्दर समरूप से जो भागवत उपस्थिती है वह कोई अन्य प्राथमिक मांग…
कुछ लोग है जो अपने पैरों पे खड़े रह सकते हैं। वे कोई चीज़ इसलिए…
... क्यों न सरल-सीधे ढंग से भगवान की ओर आगे बढ़ा जाये? सरल भाव से…
मनुष्यों की सहायता करो, परंतु उन्हें अपनी शक्ति से वंचित कर अकिंचन न बनाओ; मनुष्यों…
भौतिक सुख सुविधा, तथाकथित आवश्यकताओं और आरामों के बारे में - चाहे वे जिस तरह…
प्रेम केवल एक ही है - 'भागवत प्रेम' ; और उस 'प्रेम' के बिना कोई…