. . . बहुत कम लोग हैं, बहुत ही कम, उनकी संख्या न के बराबर है, जो सच्ची धार्मिक भावना के साथ गिरजाघर या मंदिर जाते हैं, यानी, किसी चीज़ के लिए प्रार्थना करने या भगवान से कुछ माँगने के लिए नहीं, बल्कि अपने – आपको अर्पित करने के लिए, कृतज्ञता प्रकट करने के लिए, अभीप्सा और आत्म-समर्पण करने के लिए जाते हैं। मुश्किल से लाखों में एक ऐसा होता है । . . . केवल इतना ज़रूर है कि तुम बड़ी सद्भावना के साथ जाते हो इसलिए तुम कहते हो : “ओह ! ध्यान के लिए कितनी शांत जगह है यह !”
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५३
भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…