भगवान के लिये सच्चा प्रेम है, बिना कुछ माँगे अपने-आपको दे देना। वह प्रेम समर्पण और उत्सर्ग से भरा होता है, वह कोई अधिकार नहीं जमाता, कोई शर्त नहीं लगाता, सौदा नहीं करता, हिंसा, ईर्ष्या, घमण्ड या क्रोध नहीं करता – क्योंकि ये चीज़ें उसकी बनावट में नहीं है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
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...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…