भगवान के लिये सच्चा प्रेम है, बिना कुछ माँगे अपने-आपको दे देना। वह प्रेम समर्पण और उत्सर्ग से भरा होता है, वह कोई अधिकार नहीं जमाता, कोई शर्त नहीं लगाता, सौदा नहीं करता, हिंसा, ईर्ष्या, घमण्ड या क्रोध नहीं करता – क्योंकि ये चीज़ें उसकी बनावट में नहीं है।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)

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