अगर तुम सचेतन अभीप्सा की अवस्था में हो, बहुत सच्चे हो तो बस, तुम्हारें इर्द-गिर्द सारी चीज़ें, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, अभीप्सा में मदद करने के लिए सुव्यवस्थित कर दी जायेंगी, यानि, या तो तुमसे प्रगति करवाने के लिए, किसी नयी चीज़ के संपर्क में लाने के लिए, या फिर तुम्हारें स्वभाव में से किसी ऐसी चीज़ को उखाड़ फेंकने के लिए मदद करेंगी जिसे विलुप्त हो जाना चाहिये। यह काफी अपूर्व बात है। अगर तुम सचमुच अभीप्सा की तीव्रता की अवस्था में होओ तो ऐसी कोई परिस्थिति नहीं जो इस अभीप्सा को चरितार्थ करने के लिए तुम्हारी सहायता करने न आये।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५४
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…