श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

संकरे विचार से छुटकारा

. . . जब तुम्हें लगे कि पूरी तरह किसी संकरे, सीमित विचार, इच्छा और चेतना में बंद हो, जब तुम्हें ऐसा लगे कि तुम किसी सीप में बंद हो, तो तुम किसी बहुत विशाल चीज़ के बारे में सोचने लगो, उदाहरण के लिए, समुद्र के जल की विशालता, और अगर सचमुच तुम समुद्र के बारे में सोच सको कि वह कैसे दूर, दूर, दूर दूर तक सभी दिशाओं में फैला है,  इस तरह (माताजी बाहें फैला देती हैं), कैसे तुम्हारी तुलना में वह इतनी दूर है, इतनी दूर है, इतनी दूर कि तुम उसका दूसरा तट देख भी नहीं सकते, उसके छोर के आस-पास भी नहीं पहुँच सकते, न पीछे, न आगे, न दाएँ, न बाएँ . . . वह विशाल, विशाल, विशाल, विशाल है। . . .तुम उसके बारे में सोचते हो और यह अनुभव करते हो कि तुम इस समुद्र पर उतरा रहे हो, इस तरह, और कहीं कोई सीमा नहीं है . . . . । यह बहुत आसान है। तब तुम अपनी चेतना को कुछ, थोड़ा सा विस्तृत कर सकते हो।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५४

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवती माँ की कृपा

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…

% दिन पहले

श्रीमाँ का कार्य

भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…

% दिन पहले

भगवान की आशा

मधुर माँ, स्त्रष्टा ने इस जगत और मानवजाति की रचना क्यों की है? क्या वह…

% दिन पहले

जीवन का उद्देश्य

अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…

% दिन पहले

दुश्मन को खदेड़ना

दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…

% दिन पहले

आलोचना की आदत

आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…

% दिन पहले