श्रीमां जो लाना चाहती हैं


श्रीमाँ का चित्र

मैं भौतिक जगत् में, धरती पर क्या लाना चाहती हूं :

१. पूर्ण ‘चेतना’।
२. पूर्ण ‘ज्ञान’, सर्वज्ञता।
३. अजेय शक्ति, अप्रतिरोध्य और अपरिहार्य सर्वशक्तिमत्ता।
४. स्वास्थ्य, पूर्ण, निरन्तर, अटल और सदा नयी होने वाली ऊर्जा ।
५. शाश्वत यौवन, निरन्तर विकास, बाधाहीन प्रगति।
६. पूर्ण सौन्दर्य, जटिल और समग्र सामञ्जस्य।
७. अखूट, अतुल समृद्धि, इस जगत् के समस्त धन-वैभव पर अधिकार।
८. रोगमुक्त करने और सुख देने की क्षमता।
९. सभी दुर्घटनाओं से रक्षा, सभी विरोधी आक्रमणों से अभेद्यता।
१०. सभी क्षेत्रों और सभी क्रिया-कलापों में अपने-आपको व्यक्त करने की पूर्ण क्षमता।
११. भाषाओं का उपहार, अपनी बात सभी लोगों को पूरी तरह समझा सकने की क्षमता।
१२. और ‘तेरे’ कार्य की सिद्धि के लिए जो कुछ भी जरूरी हो वह सब।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)


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