क्या श्रीमां के अन्तर्दर्शन को अथवा स्वप्न या जागृत अवस्था में उन्हें देखने को साक्षात्कार कहा जा सकता है?
वह साक्षात्कार न होकर अनुभव होगा। साक्षात्कार होगा अपने अंदर माताजी की उपस्थिति को देखना, उनकी शक्ति को कार्य करते अनुभव करना–अथवा सर्वत्र शांति या निश्चल-नीरवता का, वैश्व प्रेम, वैश्व सौन्दर्य या आनंद आदि- आदि का साक्षात्कार करना। अन्तर्दर्शन अनुभवों की श्रेणी में आते हैं, जबतक वे अपने को स्थिर रूप से प्रतिष्ठित न कर लें और उनके साथ एक ऐसा साक्षात्कार न हो जिसे वे मानों सहारा देते हैं–उदाहरणार्थ, हृदय में या सिर के ऊपर सदा माताजी का सूक्ष्मदर्शन इत्यादि।
१२-३-१९३४
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
एक आन्तरिक विनम्रता अत्यंत आवश्यक है, किन्तु मुझे नहीं लगता कि बाहरी विनम्रता बहुत उपयुक्त…
चेतना के परिवर्तन द्वारा वस्तुओं की बाहरी प्रतीतियों से निकल कर उनके पीछे की सच्चाई…
नीरवता ! नीरवता ! यह ऊर्जाएँ एकत्र करने का समय है, व्यर्थ और निरर्थक शब्दों…
जब तक कि मनुष्य अपने अन्दर गहराई में नहीं जीता और बाहरी क्रिया-कलापों को बस…