श्रीमाँ का संदेश


श्रीमाँ नन्ही मुस्कान के साथ

११ अप्रैल १९७३

. . . माँ, दर्शन के लिए आपको हमें एक संदेश देना है (२४ अप्रैल का दर्शन) ।

( मौन के बाद )

मेरे पास जो आया वह यह है :

मानव चेतना के परे

वाणी के परे

हे तू, ‘परम चेतना’

‘अद्वितीय वास्तविकता’

‘निर्विकार सत्य’ . . .

(कुछ रुक कर श्रीमाँ कहती हैं)

‘परम सत्य’ ।

संदर्भ : श्रीमाँ का एजेंडा (भाग-१३)

 


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